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जयपुर (20 अक्टूबर) प्रदेश में बाल श्रम को रोकने के लिए राज्य सरकार ने हमेशा प्रयत्नशील रही है और इसके निवारण के लिए समय-समय पर कई कदम उठाये है। यह भी सही है कि इसकी रोकथाम के लिए एक विभाग का दायित्व न होकर सामाजिक न्याय, बाल अधिकारिता, पुलिस, श्रम विभाग सहित अन्य संबंधित विभागों का सामुहिक दायित्व है। राज्य सरकार द्वारा विभिन्न विभागों के माध्यम से समय-समय पर कार्यवाही की जा रही है।
इस संबंध में मुख्य सचिव श्री निरंजन आर्य ने आदेश जारी कर कहा है कि बाल श्रम एक अपराध के साथ-साथ सामाजिक बुराई भी है इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान में 14 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों का कारखानों, खदानों तथा जोखिमपूर्ण व्यवसायों में नियोजन प्रतिबंधित किया हुआ है। बाल श्रम को रोकने के लिए बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 पारित कर लागू किया गया। भारत सरकार द्वारा इस अधिनियम में वर्ष 2016 में संशोधन कर ”बालक और कुमार श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 संशोधित अधिनियम 2016 लागू किया गया, जिनकी ”धारा-3” के तहत 14 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं का सभी प्रकार के नियोजनों में तथा धारा-3(अ) के तहत 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग के कुमार-कुमारियों हेतु जोखिमपूर्ण कार्यों में नियोजन प्रतिबंधित किया गया है।
उन्होंने बताया कि अधिनियम का उलंघन करने पर धारा-14 के तहत दोषी व्यक्तियों को 6 माह से 2 वर्ष तक कारावास एवं 20 हजार से 50 हजार रुपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध माना गया है। राज्य द्वारा उक्त अधिनियम के तहत ”राजस्थान बाल श्रमिक” (प्रतिषेध एवं विनियमन) (संशोधन) नियम 2018 7 मार्च 2019 को अधिसूचित किये गये है।
इसी तरह बाल श्रम के संबंध में प्रभावी रूप से कार्यवाही किये जाने के उद्देश्य से ”किशोर न्याय” (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 79 के तहत बाल श्रमिक के जबरन नियोजन एवं शोषण के संबंध में दोषी नियोजक को 5 साल तक के कारावास एवं एक लाख रूपए के जुर्माने से दण्डित करने का प्रावधान है।
उन्होंने बताया कि इन सभी प्रावधानोें को दृष्टिगत रखते हुए राज्य में बालक, कुमार श्रमिकों की अवमुक्ति एवं पुनर्वास आदि के बारे में ”मानक संचालन प्रक्रिया” (एस.ओ.पी.) निर्धारित की गई है, जिसमेे पुलिस विभाग के मानव तस्कर विरोधी यूनिट द्वारा बाल श्रमिक नियोजन की जानकारी हेतु हेल्पलाइन न. 100, चाइल्ड लाइन न. 1098, राजस्थान संपर्क , श्रम विभाग अथवा अन्य किसी स्त्रोत से प्राप्त होने पर सक्रियता एवं गोपनीयता से भाग लिया जाना, बालक श्रमिकों को मुक्त कराने हेतु थाना स्तर, संबंधित विभागों एवं स्वयं सेवी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ समन्वित कार्यवाही करना, मुक्त बालकों को बालगृह में पुनर्वास हेतु भेजना, श्रम बाहुल्य संस्थानों यथा होटल, ढाबा, कारखाना (चूडी एवं आरा-तारी, उद्योग), व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर सत्त निगरानी रखना, दलालों, गिरोहों की पहचानकर उनके खिलाफ कार्यवाही करना एवं प्रकरणों में विधिक कार्यवाही करना शामिल है।
मुख्य सचिव ने बताया कि श्रम विभाग, बाल अधिकारिता विभाग, जिला बाल संरक्षण इकाई, ब्लॉक स्तरीय बाल संरक्षण इकाई, ग्रामीण स्तरीय बाल संरक्षण इकाई, शिक्षा विभाग, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, जिला प्रशासन सहित सभी संबंधित विभागों को इस संबंध में नियमित रूप से बाल श्रम उन्मूलन हेतु समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाया जाना सुनिश्चित करना चाहिए।