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राजस्थान प्राकृत भाषा एवं साहित्य अकादमी का गठन

जयपुर, । राज्य सरकार द्वारा राजस्थान प्राकृत भाषा एवं साहित्य अकादमी का गठन किया जाएगा। यह अकादमी जैन धर्म के लोक साहित्य के प्रकाशन एवं जैन समुदाय की पुरातात्विक धरोहरों एवं मंदिरों के पुररूद्धार व संरक्षण हेतु कार्य करेगी।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा अकादमी के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की है। इसके द्वारा प्राकृत एवं जैन भाषा के साहित्य का संरक्षण, संवर्धन तथा अभिवृद्धि के लिए अनेक कार्य किए जाएंगे। जिनमें उच्च स्तरीय ग्रन्थों, पाण्डुलिपियों, साहित्य कोष, शब्दावली एवं ग्रन्थ की निर्देशिका तैयार करना, प्राकृत भाषा का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करना, साहित्य सम्मेलन, विचार-गोष्ठियां, परिसंवाद, कवि सम्मेलन, भाषण मालाएं, शिविर, प्रदर्शनियां एवं प्रचार-प्रसार संबंधी समस्त गतिविधियां आयोजित करना, साहित्यकारों को उनकी उत्कृष्ट रचनाओं के लिए सम्मानित करना आदि कार्य शामिल हैं।
साथ ही, यह अकादमी पुस्तकालय, वाचनालय तथा अध्ययन एवं विचार-विमर्श केन्द्र स्थापित करने, प्राकृत भाषा एवं साहित्य के उत्थान के लिए योजनाएं तैयार करने तथा अकादमी के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक कार्य करेगी।
अकादमी में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष तथा सचिव सहित 4 अधिकारी होंगे। इनकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी। साथ ही, अकादमी की एक साधारण सभा होगी। जिसमें उपरोक्त चारों अधिकारियों सहित कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, कॉलेज शिक्षा विभाग, स्कूल शिक्षा (प्राथमिक/माध्यमिक) विभाग, राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर के उप शासन सचिव/संयुक्त शासन सचिव/आयुक्त/निदेशक अथवा उनके प्रतिनिधि तथा राज्य सरकार द्वारा मनोनीत 6 प्राकृत भाषा के साहित्यकार, प्राकृत भाषा के प्रचार-प्रसार एवं विकास हेतु कार्य करने वाली प्रतिष्ठित संस्थाओं के राज्य सरकार द्वारा मनोनीत 3 प्रतिनिधि व सामान्य सभा द्वारा सहवृत्त 7 व्यक्ति अकादमी की साधारण सभा के सदस्य होंगे। इसका मुख्यालय जयपुर अथवा राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर में होगा।
अकादमी का प्रशासनिक विभाग कला, सहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग होगा तथा अकादमी का संविधान/नियम निर्मित होने तक प्रमुख शासन सचिव अथवा उनका प्रतिनिधि (संयुक्त शासन सचिव/उप शासन सचिव स्तर का अधिकारी) अकादमी में सरकारी सदस्य के रूप में कार्य सम्पादित करेगा।

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