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राजनीतिक खबर
राजस्थान में भाजपा का शासन लाने वाले आजकल अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। अशोक गहलोत शासन के दौरान भाजपा ने “अब नहीं सहेगा राजस्थान” नारे को हवा देकर कांग्रेस को तो शासन से बाहर किया, यह दीगर है कि कांग्रेस की आंतरिक लड़ाई ने भी उसे सत्ता से दूर रखा। मजे की बात है, कमल का फूल खिलाकर उसकी खुशबू लेने वालों को थोड़े से समय में ही बदबू सहन करनी पड़ रही है। एक के बाद एक राजस्थान भाजपा में चल रहे घटनाक्रमों के बीच पार्टी की छवि तार-तार हो चुकी है.ऊपर से “पर्ची सरकार” बनने के बाद राजनीतिक गलियारों में सरकार के प्रति जो धारणा बनी वो अब पूरी तरह बलवती है। यानी सत्ता के नेता ‘बेचारे’ और अफसर ‘पहलवान’ बन चुके हैं। ऐसे में भाजपा का आम कार्यकर्ता बेहद निराशा में चला गया है। ऊपर से कांग्रेस पूरी तरह हमलावर है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा अकेले ही भजनलाल सरकार को रोज लपेट रहे हैं। डोटासरा के सवालों के जवाब में भाजपा नेताओं ने खामोश की चादर ओढ ली है। जो संदेह पैदा कर रही हैं। मतलब साफ है पार्टी में आंतरिक कलह सिर चढकर बोल रहा है। इसके दुष्परिणाम लोकसभा चुनाव के नतीजें है और अब सूबे में होने वाले उपचुनाव में भी भाजपा का लचर प्रदर्शन होने की संभावना प्रबल नजर आने लगी है।
दरअसल राजस्थान में वसुंधरा राजे को निपटने के चक्कर में मोदी-शाह ने राजस्थान में “पर्ची सरकार” बना दी,इतना ही नहीं मंत्रिमंडल में भी मुखिया के अनुरूप सदस्य शामिल किए गए। जिसका परिणाम है कि जनता का नेता डॉ. किरोडी लाल मीणा आज पूरी ‘साइड लाइन’ है। कांग्रेस शासन के दौरान मीणा के द्वारा उठाए गये मुद्दों पर आज भाजपा सरकार में होने के बावजूद गंभीर न होने से युवाओं में गहरा आक्रोश है। कई महिनों से मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर सड़क पर संघर्ष करने बाबा पार्टी में अंदरूनी षड्यंत्र के शिकार हो चुके है लेकिन उनकी लोकप्रियता ग्राफ आज भी ऊंचाई लिये है। इस्तीफा प्रकरण को लंबित करना हो सकता है पार्टी की कोई आंतरिक रणनीति हो लेकिन यह मामला न केवल गले की फांस बना है बल्कि भाजपा के लिए पूर्वी राजस्थान में घाटे का सौदा भी रहा है।
अभी डॉ. किरोड़ी का मसला सुलझा भी नहीं कि उपमुख्यमंत्री डॉ. प्रेमचंद बेरवा के मामले आग में घी का काम कर दिया। दिल्ली के एक बड़े होटल की कहानी विपक्ष के लिए तो चटखारेदार है ही भाजपाई भी रंगबाजी वाले किसे को खूब हंसी मजाक में ले रहे हैं। वैसे इस तरह की घटना चाल, चरित्र की बात करने वाली सियासी जमात के लिए बेहद घातक है।
कुल मिलाकर कांग्रेस को सत्ता से हटाने को लेकर भाजपा ने जनता से जो वादे किये थे उन पर राज्य की सरकार पूरी तरह फ्लाफ हो चुकी है। जनता को भी भाजपा के सरकार में आने का फैसला “खोदा पहाड़ निकली चुहिया” वाली कहावत को चरितार्थ जैसा लगा है।
बहरहाल राजस्थान की घटनाओं से पार्टी का हाईकमान चिंतित है क्योंकि मोदी-शाह का तिलिस्म बिखराव की ओर है। ‘कांग्रेस मुक्त भारत का नारा’ अब पूरी तरह फुर्र हो चुका है। अब कई राज्यों में हाथ का पंजा शासन कर रहा है तो हरियाणा में हो रहे चुनाव में पंजे ने तगड़ी पकड़ बनाई है। ऊपर से भाजपा शासित राज्यों से हर रोज दिल्ली बुरी खबरें पहुंच रही है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को कल दिल्ली तलब किया गया। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर राजस्थान के सभी मुद्दों पर अपनी बात रखी। इस मुलाकात के नतीजे तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन बिगड़े राजनीतिक हालात से चिंता सर्वव्यापी दिखाई दे रही है.हाल ही में महाराष्ट्र,झारखंड के विधानसभा चुनाव के अलावा उत्तर प्रदेश व राजस्थान के उप चुनाव भी कमल के लिए कड़ी अग्नि परीक्षा वाले होंगे। उधर कांग्रेस भी उत्साहित होकर ताल पर ताल ठोक रही है।
लेखक – बाल मुकुंद जोशी