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फतेहपुर के चुनावी दंगल में उतरने को तैयार है, “छोटे महरिया”

सीकर जिले की फतेहपुर शेखावाटी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक नंदकिशोर महरिया चुनावी दंगल में उतरने को पूरी तरह तैयार है। महरिया इस क्षेत्र से 2013 से 2018 तक निर्दलीय विधायक थे और इसके बाद उन्होंने अगला चुनाव नहीं लड़ा था। अब विधानसभा के इसी वर्ष होने वाले चुनाव के लिए महरिया ने ताल ठोक दी है। उनकी चुनावी तैयारी बता रही है कि क्या वह इस बार हवा का रुख बदल के रख देंगे ? लगभग दो दशक से फतेहपुर शेखावाटी में सक्रिय छोटे महरिया की सियासी कहानी भी संघर्ष भरी रही है। वे छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहने के साथ – साथ इस जनपद के सबसे बड़े सियासी कुनबे महरिया परिवार से ताल्लुक रखते हैं, उनके खून में राजनीति का जज्बा भरा पड़ा है। उच्च शिक्षा के दौरान उदयपुर के कृषि विश्वविद्यालय की राजनीति में सक्रिय रहने वाले महरिया अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे हैं। लोकतंत्र के प्रारंभ से ही महरिया परिवार के स्व. रामदेव सिंह महरिया ने सीकर जिले में अपने वजूद का डंका 5 दशक तक बजाया। 1990 के दशक के बाद महरिया परिवार का रुख कांग्रेस की बजाय भाजपा की ओर हो गया। उस समय इस परिवार के एक सदस्य सुभाष महरिया ने सीकर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, हालांकि वे अपना पहला चुनाव हार गए थे लेकिन बाद में उनकी सफलता आज तक लोगों की जुबान पर है। इस दौरान छोटे महरिया ने भी अपने आप को स्थापित करने के लिए फतेहपुर शेखावाटी में 2003 का चुनाव भाजपा की टिकट पर लड़ा लेकिन वे सफल नहीं हो सके। उन्होंने एक बार फिर 2008 में भाजपा की टिकट से भाग्य आजमाया पर असफलता ही हाथ लगी। इस सबके बावजूद महरिया क्षेत्र में पूरी तरह सक्रिय रहे। लोगों के सुख – दुख शामिल रहकर अपनी मौजूदगी और व्यवहार के साथ जनता से जुड़ाव बनाए रखा, उसी का नतीजा है कि वर्ष 2013 में महरिया ने निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज कर विधानसभा में प्रवेश पा लिया। फिर 5 वर्ष के कार्यकाल के दौरान उन्होंने जनता के मुद्दों को बड़ी शिद्दत के साथ विधानसभा में उठाया। किसानों की समस्याओं के अलावा जनता के हितों हितों पर उनकी सक्रियता काबिले गौर रही। वर्ष 2018 में उन्होंने चुनाव न लड़ने का फैसला कर भाजपा की सुनीता को समर्थन दिया, लेकिन वह मामूली मतों के अंतर से चुनाव हार गई थी। उधर मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर कांग्रेस ने सदैव ही अल्पसंख्यक समाज से उम्मीदवार बनाया है लेकिन भाजपा यहां प्रयोग करती रही है। कभी जाट तो कभी ब्राह्मण को भी टिकट दिया हैं लेकिन भाजपा के लिए यह क्षेत्र अपशकुन वाला ही रहा है। आजादी से अब तक भाजपा को एक बार ही सफलता मिली है जब बनवारी लाल भिंडा यहां से चुनाव जीते। उससे पहले और बाद तक यहां कभी कमल खिल ही नहीं पाया है। सियासी गलियारों में आम चर्चा है कि इस सीट को भाजपा जजपा से गठबंधन में छोड सकती है लेकिन अभी इस चर्चा को अमली जामा पहनना होगा। यह योजना धरातल पर उतर गई तो भाजपा को जाटों के वोटो का अतिरिक़्त लाभ मिल सकता। इन परिस्थितियों में महरिया को टिकट मिलना आसान होगा। गठबंधन न होने की स्थिति में भी भाजपा जीताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार के रूप में महरिया के बारे में भी गंभीरता से विचार कर रही है। दरअसल उनके बड़े भाई व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया के भाजपा में फिर से लौटकर आने के बाद लक्ष्मणगढ़ से उनकी चुनाव लड़ने की चर्चा से फतेहपुर में छोटे महरिया को टिकट मिलने पर सवालिया निशान लग गया है। यहां पर कहना मुनासिब होगा कि फतेहपुर में छोटे महरिया की स्थिति पूरी तरह मजबूत है तो लक्ष्मणगढ़ में बड़े महरिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से कड़ी टक्कर लेनी होगी, जो नतीजे को किसी और भी मोड सकती है। ऐसे में भाजपा के उच्च स्तर पर मंथन चल रहा है क्यों न फतेहपुर में जीतने की संभावना वाले महरिया को टिकट दे दिया जाए लेकिन अभी यह मुद्दा ‘डिस्कस’ में है। बहरहाल छोटे महरिया ने फतेहपुर शेखावाटी की जंग जीतने के लिए पूरी तरह कमर कस ली है। 13 अगस्त को दो जांटी बालाजी मंदिर में धार्मिक आयोजन कर अपनी ताकत का अहसास विरोधियों को कर दिया है। सियासी पंडितों की माने तो महरिया के बिना भाजपा का कमल खिलना आसान नहीं होगा। भाजपा को महरिया को साधना जरूरी होगा। उधर यदि महरिया को भाजपा का साथ मिलता है तो उनकी जीत के आसार प्रबल हो जायेंगे।

बाल मुकन्द जोशी,
स्वतंत्र पत्रकार

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