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कांग्रेस के दिन लौटेंगे,अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी ।
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी एवं सबसे बडी राजनीतिक पार्टी रही है, जिसका देश की
सत्ता पर सर्वाधिक शासन रहा है। जिस पर परिवारवाद के आरोप लगते रहे, पर कांग्रेस गांधी
परिवार से कभी अलग हो नहीं पाई, जब भी अलग हुई जम नहीं पाई, बिखर गई। गांधी
परिवार के जिस सदस्य पर विदेशी होने का अरोप लगा, उसके नेतृत्व में कांग्रेस 10 वर्ष शासन
में रही जिसमें सत्ता का नेतृत्व गांधी परिवार से अलग हटकर हाथों में रहा। यदि उस समय
जब देश की जनता ने कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ सौंपी थी, जिसपर विदेशी होने
के आरोप लगे, वह चाहती तो गांधी परिवार के किसी भी सदस्य के सिर ताज रख देती पर वह
ऐसा न कर एवं स्वयं को सत्ता से दूर रख परिवार से अलग देश के जाने माने अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन
सिंह के सिर ताज रख दिया। जिनके नेतृत्व में कांग्रेस को दुबारा सत्ता मिली।
इतिहास इसका साक्षी है। समय परिवर्तनशील है। कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में भी अनेक उतार
चढ़ाव देखे पर कांग्रेस की धूरी गांधी परिवार के इर्दगिर्द हीं घूमती रही और आज भी घूम रही
है जब कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार से अलग हटकर है। यह भी सच्चाई है कि आज जितने
विपक्ष में दिखाई दे रहे है , बाम दल एवं जनसंघ को छोड़ अधिकांशतः सभी के सभी कांग्रेस से
ही बाहर निकले राजनीतिक दल है। जो कांग्रेस से सदैव अपनी दूरी बनाकर चलते रहे। एक
समय ऐसा भी आया जहां देश के समस्त विपक्षी दल एक साथ खडे. होकर चुनाव लड़े और
सत्ता भी पाये जिसमें आज सत्ता पर विराजमान राजनीतिक दल भाजपा का प्रारम्भिक स्वरूप
जनसंध भी शामिल रहा। एक समय ऐसा भी आया कि आज की सत्ताधारी राजनीतिक दल
भाजपा को पूर्व के लोकसभा चुनाव में मात्र 2 सीट मिली थी। आज भाजपा का परचम पूरे देश
में लहरा रहा है जहां विपक्ष के अधिकांश दल भय से या सत्ता मोह से भाजपा से हाथ मिला
चुके है तो कुछ मिलाने को तैयार बैठे है। जो विपक्ष इस तरह के परिवेश से बाहर है वे भी
आपस में एक जैसे नजर नहीं अर रहे। यह जानते हुये भी कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव
नहीं कुछ तो आपस में ही एक दूसरे पर अरोप लगा रहे है तो कुछ अपने को कांग्रेस का
विकल्प बता रहे है। कुछ भाजपा के साथ खड़े आज अलग हुये विपक्ष है जिनके टूटने का डर
मन में समाया हुआ है।
वर्तमान में सत्ता पक्ष के खिलाफ विपक्षी एकता हो पाना संभव दूर तक नजर नहीं आ
रहा। इस तरह के हालात में कांग्रेस को सोच समझकर कदम उठाना होगा। अपनी लड़ाई खुद
लड़नी होगी। उसे विपक्ष का साथ भी चाहिए, पर ऐसे विपक्ष का जो सैद्धान्तिक तौर पर उसके
साथ खड़ा हो। इस तरह के हालात में फिलहाल कांग्रेस को सहयोगी विपक्षी दलों के वजूद को
भी महत्व देना होगा । कांग्रेस के दिन जरूर लौटेंगे पर उसे संयम से काम लेना होगा। जहां
उसकी सत्ता है उसे बरकरार रखना एवं आने वाले समय में भी सत्ता में बने रहने का प्रयास
करना, उसके पुराने दिन लौटाने में सहायक हो सकते। इस दिशा में कांग्रेस कार्यकाल में हुये
जन हितकारी कार्य बैंको का राष्ट्रीयकरण, सार्वजनिक प्रतिष्ठानो ं की स्थापना जिसने देश से
बेरोजगारी दूर कर दी थी, को आम जन तक पहुंचाना बहुत जरूरी है। देश में आज भी कांग्रेस
के शुभचिंतकों की एक बड़ी जमात है जो कांग्रेस को सत्ता में आना देखना चाहते, उनका साझा
मंच तैयार करना, कांग्रेस से किसी कारण नराज होकर बाहर गये को घर लाने की रणनीति
बनाना , पुराने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता को उचित सम्मान देकर एवं उनके दिशानिर्देशन अपनाकर
कांग्रेस फिर से खोई सत्ता वापिस पा सकती है। वर्तमान कांग्रेस राज्य सरकारें राजस्थान एवं
छत्तीसगढ़ अच्छा कार्य कर रही है जहां अभी सत्ता के खिलाफ जनाक्रोश कहीं नजर नहीं आ
रहा हैं। कांग्रेस के लिये शुभ संकेत है। वहां फिर से कांग्रेस की सत्ता वापिस आ सकती है।
इस दिशा में कांग्रेस की केन्द्रीय कार्यकारणी कार्य कर रही है। जिसका आगामी लोकसभा
चुनाव पर भी फर्क पड़गा। कांग्रेस को आगामी लाके सभा चुनाव में पहले से बेहतर परिणाम
मिलने की संभावना है। समय करवट बदलता है। कांग्रेस के दिन एक दिन अवश्य लौटेगें।