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जयपुर, 17 दिसम्बर। राज्यपाल कलराज मिश्र ने संत दादू दयाल जी की शिक्षाओं को अपनाते हुए सभी से सामाजिक बुराइयों और बाहरी आडम्बरों से मुक्त समाज बनाने के लिए कार्य करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि दादू ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय की सोच से परे सदा सामाजिक समरसता की बात अपनी वाणियों में की।
राज्यपाल मिश्र शनिवार को दादू पंथी साहित्य शोध संस्थान द्वारा कोटड़ा, दौलतपुरा में आयोजित हिन्दी अनुशीलन पत्रिका के दादू दयाल विशेषांक के लोकार्पण समारोह में सम्बोधित कर रहे थे। राज्यपाल मिश्र को इस अवसर पर दादूपंथी साहित्य शोध संस्थान, जयपुर की ओर से दादू रत्न अलंकरण सम्मान भी प्रदान किया गया।
राज्यपाल ने कहा कि दादूदयाल मानवीय संवेदना के विरल संत थे, उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवता को प्रेम का संदेश दिया। वे समाज में समानता के साथ बदलाव के पक्षधर थे और जड़त्व को तोड़ने एवं रूढ़ियों को दूर करने में विश्वास रखते थे। उन्होंने कहा कि दादूदयाल ने जात-पात और पंथ से जुड़ी सीमाओं को दूर करते हुए हरेक व्यक्ति में मनुष्यत्व की तलाश को सदा महत्व दिया। उनका मानना था कि वर्गभेद, जात-पात के बंधन से दूर जो मनुष्य प्राणी मात्र के कल्याण के लिए कार्य करता है, वही सच्चा ईश्वर भक्त है।
राज्यपाल मिश्र ने कहा कि दादू समय से आगे का विचार रखने वाले संत थे। देहदान की जिस परम्परा की बात आज होती है, दादू ने तो सदियों पहले अपनी वाणी में जीवित ही नहीं मरने के बाद भी मृत देह की सार्थकता की बात कही। दादू ने कहा है कि हरि भजन साफल जीवणा, पर उपकार समाय। दादू मरणा तहां भला, जहां पशु पक्षी खाय।
वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी ने कहा कि संत दादू दयाल जी की वाणियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी आज से सदियों पूर्व थीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. रमा ने कहा कि व्यक्ति को सार्थक जीवन जीने के लिए ईश्वर में आस्था रखते हुए अपने जीवन और समाज के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए, यही दादू की शिक्षाओं का सार है।
राजस्थान विश्वविद्यालय के कला संकाय अध्यक्ष प्रो. नन्द किशोर पाण्डे ने कहा कि भारतीय संत परम्परा ने देश के लोक जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आरम्भ में राज्यपाल ने कार्यक्रम में उपस्थितजन को संविधान की उद्देशिका और मूल कर्तव्यों का वाचन भी करवाया।
कार्यक्रम में दादूपंथी साहित्य शोध संस्थान के अध्यक्ष स्वामी श्री रामसुखदास, देशभर से आए साधु-सन्यासी तथा विद्वतजन उपस्थित रहे।